'राहुल का समय शुरू होता है अब..'
बड्डे
अगले आम चुनाव की नाव, अपने-अपने दल की कौन खेयेगा, इसका खेल चालू हो चुका
है। पिछले "इलेक्शन" के बाद जितना "कलेक्शन" हुआ है उसका "ऑलराउंड
परफॉर्मेस" देश की "पब्लिक" भी देखेगी। वैसे भी अब वर्तमान सरकार की चला
चली की बेला है। आने वाला वक्त किसका होगा कहना मुश्किल है। सरकार कितने
दिन और टिकेगी यह तजबीज पाना भी "टफ" है। क्योंकि इधर मुलायम कठोर हुए कि
उधर सरकार की सांस थमी। वैसे भी करुणा की बेरुखी के बाद से सपा और बसपा की
बैसाखी पर लड़खड़ा रही सरकार की हर सुबह एक डर के साथ होती है कि कब कौन
टंगड़ी मार दे और सरकार औंधे मुंह गिर पड़े। इसलिए पार्टी में समय से
"राहुल राग" कांग्रेस के बैरम खां टाईप के लोगों ने छेड़ दिया है कि राहुल
ने प्रधानमंत्री बनने से कभी परहेज नहीं किया। बस पब्लिक न उनसे कन्नी काट
लें। लेकिन बड़े भाई अबकी प्रधानमंत्री की रेस में कांग्रेस को छोड़ दें तो
जितने दावेदार दर-दर की ठोकरें खाते खम ठोंक रहे हैं, वे सारे के सारे
पूर्व या वर्तमान मुख्यमंत्री हैं। हां बड्डे! मुख्यमंत्रियों का यह तर्क
गले उतरता है कि देश में सीएम का प्रमोशन पीएम पद में न हो तो, किसमें
होगा। आखिर वे भी लोकसेवक की भांति वेतन, भत्ता और पेंशन को एंज्वाय करते
हैं तो प्रमोशन क्यों नहीं? बाबूलाल गौर जरूर डिमोशन के बाद भी डटे हैं, तो
अपवाद कहां नहीं होते।"बट"
बाकी के सीएम आखिर कब तक सीएम बने रह सकते हैं। उनका विराट व्यक्तित्व भी
विराट देश के साथ एकाकार हो जाना चाहता है। ऐसी हिमाकत करने की जुर्ररत है
तो सिर्फ इसलिए कि वे दुनिया की सर्वाधिक अनुशासित पार्टी कांग्रेस का
हिस्सा नहीं है, वरना यहां तो ऐसा मन में सोच लेना भी पाप है, क्योंकि जब
प्रधानमंत्री बनने के बाद भी "मन" नहीं सोच पा रहे कि "क्या करें क्या न
करें, ये कैसी मुश्किल हाय.!" देश की राजनीति और संस्कृति में विरोधाभाष
है। जीवन की चार अवस्थाओं- ब्रम्ह्चर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास की
निर्धारित उम्र सीमाएं हैं। मगर वानप्रस्थ और संन्यास की उम्र में दाखिल हो
चुके लीडरस में पीएम पद का असर ज्यादा हिलोरें मारता है। अरे बड्डे क्यों न
मारे आखिर नेताओं के लिए पीएम ही राजनीति के मोक्ष का द्वार है। जब तक इस
द्वार के दर्शन चाहे गुलजारी लाल नंदा, चरण सिंह जैसे कुछेक दिन के लिए ही
संविदा टाईप "पीएम" से क्यों न बने, पर तभी मुक्ति संभव है। वरना! "अगर
बनते इस जीवन, में लेगें जनम दोबारा." इसीलिए दिग्गी दादा बार-बार राहुल
गांधी को पीएम बनाने का राग जब-तब छेड़ देते हैं। उनकी उम्र भी देश की
संस्कृति के लिहाज से वानप्रस्थ से पहले की है। इसलिए 'राहुल का समय शुरू
होता है अब..!'
No comments:
Post a Comment