Saturday 6 July 2013

न गरीब रहेगा, न ही गरीबी

बड्डे खाद्य सुरक्षा की सरकारी पहल से भौंचक्के हो बड़बड़ाये कि- 'बड़े भाई पहले दुत्कार और फिर प्यार। जा तो कछु ऐसई है जैसे 'तनक धमक दई, फिर पुटया लऔ!' सरकारें बड़ी सयानी हैं बड्डे। चुनाव आये नहीं कि उसे कभी गरीबी रास आती है तो कभी यह सताने लगती है। खाद्य सुरक्षा के 'इमोशनल' उपाए (एक-दो रुपइया किलो में अनाज) यानी तकरीबन फोकट में पेट भरने का सिस्टम सरकार को तभी सूझ जब उसके 'एग्जाम' (चुनाव) सर पर आ चुके है। अरे तो क्या हुआ! तुम भी तो पढ़ाई तभी करते थे जब तलक परीक्षा का 'टाईम टेबल' वॉल पर चस्पा न हो जाए। मगर बड्डे तुम हो कि जब देखो सरकारों की करतूतों पर छाती पीटते, उसमें नुक्ताचीनी करते हो। 'यू नेवर अंडरस्टैंड' कि सरकार किसी 'होम्योपैथी मेडिसिन' की 'इस्टाइल'(पहले मर्ज का बढ़ना फिर घटना) में अपने काम-काज को बिना साइड इफेक्ट के निपटाती है। पहले वह मजर्(महंगाई, गरीबी, मौंते, मुसीबतें) को बढ़ाती हैं, फिर जब तुम आहत हुए तो, राहत का मरहम लगाती हैं। इस पर उदास बड्डे ने आह भरते हुए एक शेर दाग दिया कि 'उस ने हमारे जख्म का कुछ यूं किया इलाज, मरहम ही गर लगाया तो कांटे की नोक से' बावजूद इसके राजनैतिक थुक्काफजीती का आलम यह है कि विपक्ष समेत जो दल सरकार के साथ दलदल में धंसे हैं उनकी भी आपत्ति इस बात को लेकर है कि उनसे बगैर पूछे, बिना अहमियत दिए एकतरफा सारी क्रेडिट सरकार कैसे हजम कर सकती है। गरीब केवल सरकार के कैसे हो सकते हैं।'गरीब और उसकी लुगाई तो सबकी भौजाई होती है।'तो कांग्रेस का गरीबों पर 'सिंगल' दावा कैसे मंजूर हो सकता है। लेकिन बड्डे जब सरकार संसद में बहस कराना चाहती थी, विरोधियों को मना रही थी तो ये बर्हिगमन कर कैंटीन में चाय की चुस्कियां ले रहे थे। और अब सरकार 'रैम्बो' टाईप से कानून की बना रही तो चिल्लपों मची है। लेकिन बड्डे अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कहीं गैस सिलेंडरों(9)की शुरुआती सुझव की तर्ज पर कानून में यह सुराग न बना दिया जाए कि जहां कांग्रेसी सरकारें हैं केवल वहां के गरीब इस खाद्य सुरक्षा का सुख ले सकेंगे। अलबत्ता बड्डे सरकार इस अध्यादेश के जरिए एक तीर से दो शिकार करने जा रही है। अभी 26 और रुपए 32 रुपईया कमाने वाले गरीब नहीं थे। अब यही लोग गांव के सामंत कहलाएंगे और उनके अन्नागार एफसीआई के गोदामों से ज्यादा सम्पन्न होंगे। सरकार यह दावा कर लोकल से ग्लोबल तक के मंचों में अपनी पीठ ठोक-ठुकवा सकेगी कि अब इंडिया विपन्न नहीं सम्पन्न कंट्री है। यहां 'न गरीब रहेगा, न ही गरीबी'..समङो बड्डे!