Friday 21 June 2013

केदारनाथ के दरबार में हाहाकार

बड्डे बाढ़ की विभीषिका से भौंचक्के हो बोले- बड़े भाई केदारनाथ जो सारे संसार के नाथ हैं, लेकिन एक रात में हजारों को अनाथ कर गए। जिते देखो उते भक्तन की कब्रगाह बनी है। समूचा परिसर शमशान में तब्दील हो चुका है। अरे बड्डे! भोले तो ठहरे अघोरी। वे शमशान के राजा हैं। उन्हें ऐसे ही स्थान रास आते हैं।इसलिए वर्षो से आदमियों और वहां के पंडों ने कब्जा कर सराय, होटल बना धंधा शुरू कर, गंदगी का साम्राज्य फैला रखा था। जिससे देव भूमि में मच्छर और वायरसों का प्रकोप पसर रहा था। ऐसे में वे किस सरकार से कहते कि मेरे इलाके का अतिक्रमण हटाओ। सो कैलाश में उन्होंने निगाह टेढ़ी की और इन्द्रदेव को इशारा किया और एक झटके में मामला साफ हो गया। और तो और आदिगुरू शंकराचार्य जिन्होंने आठवीं सदी में मंदिर की नींव रखी थी और जिनकी समाधि मंदिर के ठीक पीछे है उनको भी नहीं बख्शा। अब वहां सफाचट मैदान है। अब है कि आस्तिक बनाम नास्तिक की जुबानी जंग चल पड़ी है।
मिस्टर नास्तिक ने स्टेटमेंट दिया कि- ईश्वर होता तो उसकी पूजा उपासना के लिए दूर-दूर से आये यात्रियों को भोले बाबा बचा न लेते 'दिस वाज द अपॉरच्यिुनटी टू प्रूव दैट ही इज सम व्हेयर'। लेकिन सिर्फ अपना ही ख्याल रखा। खुद तो खम्बा गाड़ के जहां के तहां अड़े हैं। लेकिन जिन्होंने उस खम्बे को पकड़कर शरण लेने की कोशिश की उन्हें भी नहीं बख्शा। तुम कहते हो कि स्वर्ग से गंगा का अवतरण हुआ जिसे पाताल में जाने से रोकने के लिए भोले बाबा ने अपनी जटाओंे में रोक लिया तो फिर यह कैसा गंगा में उबाल आ गया। कि उनके भक्तों को लील गया। सो कहीं ईश्वर नहीं है। सब मन का भ्रम है, पाले रहो, देश सदियों इसी के सहारे रहा।पहले कई टुकड़ों में बंट चुका और दुनिया में सबसे पिछड़ गया। अड़ोसी-पड़ोसी(चीन-पाक) सब आखें तरेर रहे हैं। हम भगवान भरोसे यथास्थिति में पड़े हैं।
तभी मिस्टर आस्तिक बोले- तुम नास्तिक लोग 'आलवेज निगेटिव' सोच रखते हो। प्राकृतिक आपदा सदा से आती रही हैं। वे लोग किस्मत वाले हैं जिन्हें भगवान के स्थान से मुक्ति मिल गई। ठीक केदारनाथ मंदिर के पीछे वाले पहाड़ से स्वर्गारोहणी का रास्ता है। जो भक्त असमय कालकलवित हो गए, वे सांसारिक दृष्टि से भले परिवारजनों के लिए पीड़ा का सबब हैं। अरे बड्डे! यह देह ही नश्वर है, लेकिन देव स्थान में जाए तो किस्मत की बात है। पहले भी तीर्थ जाने वालों को फूल-माला पहना कर विदा किया जाता था कि अगर लौटे नहीं तो समझो भगवान ने स्वर्ग बुला लिया। मैं तो कहता हूं कि यह बहस बकवास है।सब प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा है। इसलिये अब तो चेतो और पीड़ितों के लिए राहत की सोचो!!