Thursday 18 October 2012

भारत के विकिलीक्स हैं केजरीवाल

केजरीवाल इनदिनों ऐसी फुटबाल खेल रहे हैं जिसमें कभी किक कांग्रेस के कारिंदों पर होती है तो कभी भाजपा के। देश के दोनों बड़े राजनैतिक दल सकते में हैं।
राजनैतिक गंदगी की सफाई की लड़ाई में बाबा, अन्ना जैसों के बैकफुट में आने के बाद, फ्रंटफुट में आये केजरीवाल एक-एक को देख लेने की कसम खा चुके हैं। वे चुन-चुन के बड़े दामाद टाइप जो बिना कुछ करे चमत्कारिक सत्ता की दम पर करोड़ों लील गए,दाद देनी होगी दामाद की कि बड़ी साफ गोई से मुकर गये घपले के पचड़े से। एक चमचे टाईप मंत्री जो असहाय विकलांगों के हिस्से की रकम पर कुदृष्टि लगा बैठे और कुछ अध्यक्ष टाईप लोग जो किसानों की जमीनें और सिंचाई के पानी से खुद को तर करने में लिप्त हैं। कहते हैं कि ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता’ पर केजरीवाल अकेले ही ऐसे चेहरों को बेनकाब करने में भिड़े हैं। वैसे यह सही समय है जो उन्होंने चुना है। दीपावली की पुताई में जहां घर-द्वार सफेदी से चमक रहे हैं वहांअकेजरीवाल इस सफेदी के पीछे छिपी कालिख को उजागर करने में जुटे हैं, ताकि देश भी जान समझ ले कैसे रातों रात 7 करोड़ से 54 करोड़ में बनाए जाते हैं। दामाद बनने के फायदे गिनाते हुए बड्डे बोले-बड़े भाई अफसोस है कि मैडम के एकई बिटिया थी, वरना हम भी अपने लड़के का प्रस्ताव प्रस्तावित तो कर ही देते। जब बर्तन का धंधा करने वाले का नम्बर लग सकता था तो अपना लड़का तो विदेश में साफ्टवेयर इंजीनियर है। वह इस रातो-रात मिलने वाली अकूत रकम को बड़े इत्मिनान से मैनेज कर लेता। कहीं चूं-चपड़ तक न होती और फिर कालाधन विदेश में ही महफूज रह सकता है। उधर काला धन का आंकड़ा देते, चीखते-चिल्लपों करते, बाबा, अन्ना जैसों के गले चोक हो चुके हैं। रहा सवाल केजरीवाल का तो उसको अपने चमचे टाईप मंत्री निपटा लेंगे। चमचे टाईप मंत्री फरुखाबाद आने की धमकी देकर खुले आम कह रहे हैं कि ‘रगों दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल, जो आंख से ही न टपका वो लहू क्या है।’ खून की बातें खुले आम संविधान में शांति और व्यवस्था की सपथ खाये मंत्री करने लगे हैं, तो अपराधियों का क्या कहना। लेकिन बड्डे बोले‘अ पना केजरीवाल तो इंडियन टाईप का विकीलीक्स निकला।’ ‘अ’ से असांजे और ‘अ’ से अरविंद यानी केजरीवाल भारत के अरविंद असांजे हैं। ऐसी-ऐसी खबरें निकाल रहा है कि जैसे एक-एक की ऐसी-तैसी करके ही दम लेगा। वहां से भी जहां कभी शक की कोई गुंजाईश न थी। हो न हो, बसपा, सपा, तृणमल, डीएमके, जैसों पर भी जांच की आंच आयेगी। खैर अब तो देखने वाली बात है कि विकीलीक्स का इंडियन संस्करण और क्या-क्या गुल खिलाता है.!!!

Thursday 11 October 2012

चमचे का नमक, चेहरे की चमक

  बड्डे को हल्के मूड में देख हमें सुकून आया कि चलो आज तो कुछ अच्छी खबर है। हमें देखते ही बोल पड़े- बड़े भाई कल के चारण-भाट आज के चमचों के रूप में रूपांतरित हो गए हैं। पहले ये कविताओं, गीतों या किताबों में तारीफों के कशीदे पढ़करअपने स्वामियों का मन मोहने और इनाम हासिल करने की जुगत में बे-वजह खीस निपोरते पाए जाते थे और आज भी ये अपने-अपने आकाओं की ऐसी ऊर्जा बने हुए हैं, जिसके बिना बॉस का अस्तित्व ही खतरे में लगता है। चमचे सिर्फ राजनीति में ही नहीं, बल्कि हर जगह अपने विभिन्न रूपों में पाए जाते हैं। इनकी वैराइटी खाने के चम्मच(स्पून) की तरह छोटी-बड़ी, चमकीली अथवा कम या अधिक मूल्य (वैल्यू) की होती है। बहरहाल, चमचों की जितनी प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं उतनी विश्व के किसी और मुल्क में मिलना मुश्किल है। जैसे खाने का चम्मच हमें सुविधा और सहायता देता है वैसे ही नेताओं, धमर्गुरुओं, अफसरों के चमचे,चेले उनकी खुशामदीद में व हर कही बात को सच साबित करने में सहयोग देते हैं।

चमचों की अखंड धारणा और एक सूत्री कार्यक्रम है कि अपना बॉस गलत न तो बोल, न कह सकता।

समर्पण और शरणागति ही चमचत्व का तत्व है। ईश्वर भी भक्तों से यही चाहता है कि तू मेरा बन, फिर कृपा ही कृपा है। बस यही तो चमचों का दायित्व है कि वे न सिर्फ अपने आका की बात का आंख मूंदकर समर्थन करें, जयकारे लगाएं बल्कि वे उनके प्रतिद्वन्दी पर हमला भी करें और इससे उत्पन्न सारा कसाय कल्मश अपने सीने पर ङोल लें। आंच तक न आने दें अपने भाग्यविधाता पर। चमचों का सौंदर्य ही इसमें है कि वे निरंतर चैतन्य अवस्था में एक्टिव बने रहें। यूपीए के एक मंत्री तो खुलेआम कह रहे हैं कि अपना तो काम ही यही है कि आका के परिवार पर कोई आंच आये तो सारा ताप वे अपने सीने में लेने को तत्पर हैं। यानी मंत्री वे बाद में पहले तो चमचे ही हैं। सारा देश गलती कर सकता है पर उनके आका गलतियों से सवर्था मुक्त हैं। जैसे ईश्वर गलतियों से परे है। तभी तो हम चमचे उन्हें(बॉस) देवता की तरह पूजते हैं। दरअसल चमचे अपने बॉस का नमक है। नमक से ही देह में चमक आती है। नमक का अनुपात बनाए रखना चमचों का अनिवार्य दायित्व है। इसलिए हर बॉस की शकल में मौजूद चमक को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि किसके पास कितने आयोडीनयुक्त नमकदार चमचे हैं। जो समय-समय पर नमक की आपूर्ति संतुलित रूप में करते रहते हैं। एक पूर्व बड़बोले सीएम इस नमक को संतुलित नहीं रख पाए तो दरबार से बाहर कर दिए गए। आखिर बड्डे बोले बड़े भाई चमचा वही जो नमकदार हो।
                                                                                     श्रीश पांडेय

Wednesday 3 October 2012

औसत में जीत है

  टी-ट्वंटी वर्ल्ड कप क्रिकेट में आलम दर्जे की बल्लेबाजी के गुमान में जी रही टीम धोनी की लगातार तीसरी बार धुल जाने से बड्डे सर पर हाथ रखे कुछ यूं बैठे थे मानो अब देश का कोई भविष्य नहीं रहा, अब भारत कैसे जिएगा, क्योंकि उसका चिर प्रतिद्वन्दी, जिसको वह तीन दिन पहले 8 विकेट से कूट-पीट चुकी है वह अब भी चैंपियन बनने की दौड़ में शामिल है। हार के जीत और जीत के हार के रूल्स अब बड्डे को बिल्कुल रास नहीं आ रहे थे। पर सिवाय बड़बड़ाने के बड्डे और कुछ नहीं कर पाने की बेबसी से बेहाल बीयर की चुस्की के साथ बिस्तर डले गहरी चिंता में मशगूल थे। इतनी फिकर तो गैस, डीजल के महंगे होने, विदेशी कंपनियों की देश में घुसपैठ, और डायनासोर सरीके बडेÞ-बड़े घोटालों पर नहीं की। बड्डे बोले बड़े भाई अपन जीत के भी हार गए और दूसरे हार के भी जीत गए यह बात नहीं पच रही। गब्बर सिंह के अंदाज में बड्डे बोले कि ‘हमने कुल 6 में 5 मैच जीते और टूर्नामेंट से बेदखल, उधर वेस्टेंडीज कुल दो ठईया मैच जीत के अंदर, सरासर नइंसाफी है बड़े भाई।’     
   हमने समझाया अरे बड्डे! सब औसत का खेल है। उसी की जीत है, जिसका औसत ठीक है, वही  चैंपियन बन सकता है। औसत यानी बैलेन्स रहो। टीम धोनी के धुरंधर उत्साह में ज्यादा औसत में कमजोर साबित हुए, जबकि औसत का गणित पहले से इम्पारटेंट माना जा रहा था, चाहे वह खेल हो या चुनाव। गाड़ियों के बिकने में भी एवरेज का रोल है, जिसका ऐवरेज दुरुस्त नहीं समझो मार्केट से बाहर। एमबेस्डर, फिएट, बुलेट, राजदूत सब के सब इसी एवरेज के चलते ठिकाने लग गर्इं। परीक्षाओं में एवरेज मेन्टेन करना होता है, वरना ज्यादा में भी हार हो जाती है। फिर भी भारत के भाग्य विधाता बुद्धि में नहीं भावना में जीते हैं। सरकार कितना भी लूट-खसोट कर ले, महंगाई बढ़ा ले, तिस पर जनता कितना भी सरकार को कोस ले, कुढ़ ले, पर वह इन सबसे बेपरवाह औसत को महत्व देती है। उसे बखूबी पता है कि सब करो पर ऐन टाइम (चुनाव के वक्त) मिथ्या घोषणाएं और कुछ नकदी बांट-बंूट के नाराजगी का औसत मेन्टेन कर वह हार से बच जाएगी। पर अपनी टीम है कि कभी आठ विकेट से हारती तो कभी आठ विकेट से हराती। अब जरूरत है नेट प्रैक्टिस की बजाए औसत का गुरूमंत्र लेने की। इसके लिए टीम इंडिया को 10-रेसकोर्स की शरण में जाना होगा, जहां वह औसत को कैसे मेन्टेन किया जाए, के गुर सीखे।कांग्रेस, यूपीए सरकार को बरकरार रखने के लिए जज्बात नहीं हालात के तकाजे में देखती है। माया, ममता और मुलायम में औसतन जो फिट हो, बस उसी को भाव, बाकी से कन्नी काट लो। क्योंकि औसत में ही जीत है।