Saturday 23 November 2013

'वोट ऑन सेल' आफर चालू है

बड्डे ने बनबारी से कहा कि आज शाम से खुलेआम चुनाव की चर्चा, काना-फूसी, तीर-तुक्का, जिताने-हराने के निवेदन, विश्लेषण सब 'साईलेंट' हो जाएंगे। और फिर शुरू होगा अंदरखाने में अल्टी-पल्टी का दौर। लक्ष्मीदेवी दीपावली में भले उतनी चंचल नजर न आईं हों, जितनी आगामी दो दिनों में होने जा रही हैं। बड्डे बोले- अरे बनबारी! इस दफा चुनाव आयोग के डंडे का डर चौतरफा पसरा है।पोस्टर, बैनर, मोटर-गाड़ी सब 'काउंट' में और 'लिमिट' में हैं। चुनाव आयोग की गोपनीय निगाहें, 'बिग बॉस शो' की 'थर्ड आई' की तरह एक-एक गतिविधि को 'वॉच' कर रही हैं। तभी तपाक से बनबारी ने कहा- नेता-जनता दोनों 'वेलनोन' हैं कि हाथ जोड़ने, मिन्नते करने, 'डोर टू डोर' खाली पर्चा लिए खीस निपोरने से कुछ हाथ नहीं आने वाला। आगामी पंचवर्षीय मलाई पेलने के पहले, पब्लिक को 'माल' की आयुव्रेदिक 'पुड़िया' दबे छुपे दिये बिना 'गेम' नहीं बनने वाला। क्योंकि इस पुड़िया में वो ताकत है जो प्रतिद्वन्द्वी के 'सॉलिड से सॉलिड' वोटों को गच्चा देकर अपने पाले में ला सकती है। इसलिए अभी असल काम बाकी है। कहते हैं न कि 'रात बाकी, बात बाकी।' खबर है कि फलां, ढिकां के समर्थन की मोटी मलाई लील रहा है। जनता का एक बड़ा वर्ग है जो दो दिन की मलाई के लिए पांच साल तक अपना तेल निकलवाने के लिए तैयार हो जाता है। बड्डे खीङो- यार बनवारी तुम्हारी सोच बौनी है, नकारात्मक है। जनता अब 'सेंसिबल' है और सब जानती है कि कौन फोकटिया, कौन काम का और कौन नक्शेबाज है और कौन सहज सुलभ? और फिर यह कोई पार्षद, मेयर या पंचायत का चुनाव नहीं जिसे व्यक्ति विशेष हांकेगा। यह तो प्रदेश की सरकार बनने िबगड़ने का मामला है, एक विचारधारा को बरकरार रखने या बदलने का मामला है। अपना प्रदेश कहां था, कहां आ गया है, इस मसले पर जनता को फुसलाया नहीं जा सकता। जो कथित नेता-नपाड़ी 'माल' के बदले 'वोट ऑन सेल' का अभियान छेडें़ हैं न बनबारी, उनकी दाल नहीं गलने वाली। बनबारी ने बड्डे को प्यार से समझया कि तुम 'थ्योरिटिकली' सही हो मगर 'प्रैक्टिकली' गलत। क्योंकि विकास या विनाश का सच या तो स्वीकार होता नहीं या होने नहीं दिया जाता। जनता जाति के नशे में बौराई सी बाग रही है। क्योंकि आलाकमानों ने टिकिटों की ऐसी गोटी फिट की है कि 'सेम कास्ट को सेम कास्ट' से लड़ाओ है। ताकि एक 'ग्रेट कनफ्यूजन क्रियेट' किया जा सके।इसलिए वोट का मूल्य काम-धाम से नहीं 'माल' से तौला जा रहा है। सो मौका है बड्डे भूत की लंगोटी ही ले लो वर्ना अगले पांच बरस सिर्फ चिल्लपों होगी..!