Friday 22 March 2013

एंटी या 'एंटीक' रेप बिल


कुछ रोज पहले बड्डे ने 'अर्ली मार्निग' खबर पढ़ी और कहा कि जैसा 'वुमेन सिक्यूरिटी बिल' मनचलों के दिल को तंज करने के लिए पारित किया गया है, उससे दामिनी की दुखद आत्मा को क्या मिला होगा! कहना 'टफ' है मगर इतना तो तय है कि अब मजनुओं, मनचलों, टपोरियों की 'वाट' कभी भी लग सकती है। क्योंकि बड़े भाई- दामिनी के दर्द की एंटीबायटिक दवा के रूप में एंटी रेप बिल देश की सर्वोच्च सभा में 'टशन' के बीच पास हो गया। सो बड्डे 'नाऊ थिंक ट्वाईस विफोर स्पीक, सी ऑर टच टू फीमेल्स।' अब तो स्त्री जाति से कोई भी व्यवहार चाहे वह सामान्य बातचीत का ही क्यों न हो, दो नहीं दस बार सोचकर करना होगा। बड्डे बोले- बड़े भाई यह बड़ा फसउव्वल सा एक्ट है। अब सोचो- समाज है, जीवन है, टीका टिप्पणी भी न चले तो फिर जीवन किसलिए। बड़े भाई इस 'एंटी रेप एक्ट' की टेंशन मर्दो को ही नहीं, स्त्रियों को भी है। साथ ही उनके लिए भी जो तमाम फैशन की वस्तुओं के निर्माता हैं। क्योंकि फैशन, फेशियल से लेकर फेयर करने वाली क्रीम तक का ब्यूटी निखारने का प्रयोग जिन पुरुषों के लिए था, वे अब राजी खुशी नहीं बल्कि मजबूरी में मौनी बाबा बनने जा रहे हैं। तो ऐसे में सारी सजावट, सौन्दर्य 'मीनिंगलेस' हो जाएगी। 'एक्चुअली' ऐसा नहीं है बड्डे। अब स्त्रियों से व्यवहार में शिष्टता, शालीनता के तत्व अनिवार्य होंगे। तो क्या अब पुरुषों को कहां, कब, क्या बोलना है उसके बाकायदे चार्ट चौराहों पर लगेंगे? बड्डे 'रिस्पेक्ट' अंदर का मामला है पर हैरत की बात है कि इसे कानून के जरिए इम्लीमेंट किया जा रहा है। गर ऐसा होता तो अपना देश कानून के ग्रंथों से पटा पड़ा है। पर अपराधों की धार हर कानून को हलाक कर देती है। विडम्बना है कि हमारे नेता- नपाड़ियों ने इस बिल की खिल्ली कुछ यूं उड़ाई कि- लड़की को घूरने और पीछा करने के प्रावधानों पर शरद यादव ने कहा कि अगर लड़के लड़कियों का पीछा नहीं करेंगे, तो प्यार होगा कैसे? लालू यादव ने भी बिल के बिंदुओं पर चुटकी ली कि वह तो अपनी पत्‍नी को देखने पर भी फंस जाएंगे। मुलायम सिंह यादव ने यह कह कर तो हद ही कर दी कि बिल के कड़े प्रावधानों से तो महिला कर्मचारियों का ट्रांसफर रुकवाने वालों को जेल जाना होगा। दरअसल मुलायम ट्रैफिकिंग को ट्रांसफर समझकर कन्फ्यूज थे।
अलबत्ता देश में महिलाओं के विरुद्ध हो रहे अस्मिता संबंधी अपराधों के बरक्स यह बिल एंटी नहीं 'एंटीक' जान पड़ता है। इतने सख्त पहरे तो इतिहास के उस हिस्से में भी दर्ज नहीं हैं, जब समाज आर्थोडॉक्स था। अब तो विकास, खुलेपन का दौर है ऐसे में महज कानून क्या उखाड़ लेगा। फिर भी बिल के बिन्दु इतने सख्त है कि वे हर लिहाज से एंटीक हैं।

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