Saturday 2 March 2013

बजट की ओट में साइलेंट चोट

ब जट बजट..जपते पूरा महीना इसी शोर में निपट गया मगर जब आया तो वह हमें निपटा गया। बड्डे पूछ बैठे कि- बड़े भाई बजट का गणित आप कुछ समझे? हमने कहा- बड्डे बजट का मायाजाल तो अच्छे-अच्छे खां नहीं बूझ पाते तो फिर हम किस खेत की मूली हैं। अरे बड़े भाई अब मूली भी मामूली नहीं रही, गाजर से महंगी है इसलिए इस कहावत को वक्त के साथ कुछ यूं बदल डालो कि "तुम, हम या वो किस खेत की गाजर-मटर हैं।" खैर बड्डे दुनिया में हर रोग की दवा है। जिसकी नहीं है उसके भी टीके ईजाद किए जा रहे हैं। मगर नासपिटी महंगाई का नहीं जो अखंड ला-इलाज बनी है, थी और रहेगी। इसके टीके खोजने के फेर में, 65 बरस से देश वे लोग जो नेता टाईप के थे, इससे मुक्त हो गए और "साइलेंटली" इसी के झोल-झंसे में कुछ "रिच टाईप" के नेता बन चुके हैं, तो कुछ बनने की प्रक्रिया में हैं। ऐसों के लिए बजट एक उत्सव है- टिप्पणी देने और फोटू छपवाने का। दरअसल, बड्डे बजट बड़ा अबूझ है।125 करोड़ में से 124 करोड़ से अधिक लोगों के लिए बजट में "यूज" की जाने वाली शब्दावली "काला अक्षर भैंस बराबर है।" जनता क्या "नाइंटी परसेंट" नेता-नपाड़ियों से पूछ लो कि जीडीपी, एनएनपी, जीएनपी, मुद्रास्फीती, बजट घाटा, राजस्व घाटा, भुगतान संतुलन जैसे "टर्म" के अर्थ क्या हैं, तो एसी चेम्बर में पसीना छूट जाएगा। यकीन न हो तो इसे पढ़ने के बाद अपने आस-पड़ोस में आजमाएं क्योंकि "हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फारसी क्या?"वो तो भला हो कुछ चिदम्बरम, मनमोहन सिंह टाईप के "अपाईंटेड" नेताओं का, जो हावर्ड सरीखी यूनिवर्सिटीज से उपजे लीडर्स हैं। वे इस टर्मिनॉलाजी को बेहतर समझते-बूझते हैं। इसलिए देश में बजट जैसी उठापटक साल में एक बार हो ही जाती है। बड्डे बोले बड़े भाई-इस बार जो बजट है उसमें ऐसी कारीगरी की गई है कि गरीबों को राहत और अमीरों को आफत नजर आती है। पर. "बड़े धोके हैं इस राह में..."सारा खेल तो पहले ही डीजल की ओट में सरकार खेल चुकी है और हर माह यह खेल 'कॉनटीन्यू' रहेगा। जिसका "डाइरेक्ट इफेक्ट" महंगाई पर "ग्यारंटीड" है। क्योंकि तकनीकी युग में तेल महंगाई की जड़ है। जिसे सरकार ने डीजल से सींच-सींच कर दुरुस्त कर दिया है। सरकार की दलील है कि "महंगाई कौन कमबख्त चाहता है, वो तो इसलिए बढ़ाते हैं कि देश चल सके।" पर जब से हम "थिंक ग्लोबल एट लोकल" की थीम पर बढ़े हैं, तब से बजट साइलेंट किलर बनते जा रहे हैं। सरकार के कारिंदे पीठ पीछे वार करने का चोर रास्ता हर माह की शक्ल में ईजाद चुके हैं। बड्डे बोल पड़े हां भाईअब तो सरकार की सारी मार साईलेंट है।

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