Friday 26 June 2015

कमल में कीचड

कहते हैं कि 'इरादा(वादा)करो तो पूरा करो, कोई काम न अधूरा करो’, लेकिन लोकतंत्र में 'उसी से ठंडा, उसी गरम’ जैसी भ्रमपूर्ण बातें और व्यवहार पग-पग पर नमूदार होेतीं हैं। इस तंत्र में बात-व्यवहार में सतयुग जैसी व्यवस्था न कभी रही है और न रह सकती है। केजरीवाल जो सतयुग (सच)की राजनीति के प्रण्ोता बनकर उभरे थ्ो उनके कानून मंत्री ही गैर-कानूनी काम करके सत्ता में उनके साथी बन बैठे थ्ो। राजनीति की तासीर ही ऐसी है जिसमें दोगलापन न हो वह 'सरवाइव’ नहीं कर सकती। इसलिए राजनीति की इस मजबूरी को उसके दोगलेपन के साथ या तो हम स्वीकार कर लें अथवा उससे दो-दो हाथ आजीवन करते-करते एक दिन मर खप जाएं। लेकिन इसका बाल बांका न कर पाएंगे। लोकतंत्र का बीता इतिहास इसी बात का साक्षी है और जो जनमानस इतिहास में दर्ज हजारों नजीरों से कुछ नहीं सीखता उसका कुछ हो नहीं सकता। आजादी के बाद से आज तक सक्रिय राजनीति में एक नाम ढूंढ़े नहीं मिलेगा जिस पर तोहमतें न लगीं हों, जिसकी लोक निदा न हुई हो। जवाहर लाल नेहरू से लेकर नरेन्द्र दामोदर दास मोदी तक कुछेक अपवादों(लाल बहादुर शास्त्री, अटल बिहारी और निजी तौर पर मनमोहन सिह)को छोड़ दें तो सबके दामन दागदार हुए हैं। 
बहरहाल, मोदी सरकार की पहली वर्षगांठ ठीक-ठाक बीती, लेकिन उसके बाद तो मानों मोदी के सिपहसालार कीचड़ में एक के बाद एक धंसते जा रहे हैं, ऊपर से मोदी का मौन तो मानो मनमोहन सिह रिकार्ड तोड़ने पर आतुर हो। मनमोहन सिह पर सोनिया का रिमोट होने का ठप्पा था, लेकिन मोदी तो अपने बूते प्रधानमंत्री हैं। आम बोल-चाल में, यहां तक की लिखने-पढ़ने में भी प्राय: 'मोदी सरकार’ कहने का रिवाज है, उन्होंने जो चाहा सो किया। अपनी पार्टी के बड़े-बड़े दिग्गजों को उम्र का वास्ता देकर इतने प्यार से किनारे लगाया. लेकिन अब उनके उस दंभ पर सवाल उठने लगे हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि 'न खाउंगा, न खाने दूंगा’। इस सद्वाक्य के दूसरे हिस्से (न खाने दूंगा)को मानो लकवा मार गया हो। वे मौन हैं या ध्रतराष्ट्र बने रहना चाहते हैं अथवा शुतुर्गमुगã की भंति आफत आने पर अपना सर रेत में गड़ा लेने को विवश हैं। सुषमा, वसुंधरा और अब पंकजा जैसी तीन देवियों के अलावा अब चौथी देवी और उनकी चहेती शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी भी फर्जी डिग्री की होल्डर हैं? पर बवाल कट रहा है और आगे कौन-कौन होगा देखने वाली बात होगी।
इनदिनों तो सरकार की दो कैबिनेट मंत्री सुषमा स्वराज और स्मृति ईरानी, एक मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एवं महाराष्ट्र सरकार में पार्टी की एक मंत्री पंकजा मुंडे पर कीचड़ उछला है। यह बात सच है कि 'कीचड़ में कमल’ खिलता है, पर जब 'कमल में कीचड़’ पड़ने लगे तो बात घृणास्पद हो जाती है। यही मौका है जब प्रधानमंत्री कड़े कदम उठाकर अपनी छवि को और चमका सकते हैं। साथ ही संदेश दे सकते हैं कि 'जो जैसा करेगा, सो वैसा भरेगा’। लेकिन पद पर चिपके रहने से 'चोर की दाढ़ी में तिनका’ और 'दाल में काला’ जैसी कहावतें जन की जबान पर चढ़कर सरकार की छीछालेदर करती नजर आती हैं। ऊपर से मोदी जी का मौन मानों इस उक्ति की गवाही हो कि 'मौनम स्वीकृतम लक्षणं।’ प्रधानमंत्री जिस कमल को अपने कोट में लगाकर 'सेल्फी’ खींचते नजर आते थ्ो, उसमें वे गर गौर से देख्ों तो अब चार देवियों के कीचड़ के छींटे नजर आएंगे। हालांकि सरकार ने ऐसे कई काम काज और योजनाएं अपने हाथ में ले रखी हैं जो गर बेहतरी से लागू हुईं तो इनके सकारात्मक परिणाम दिखाई देंगे। बहरहाल, चारों देवियों के कारनामे मोदी सरकार के लिए प्रारम्भिक चेतावनी हैं, क्योंकि बीते एक साल में सिर्फ बातें हुई हैं, योजनाएं बनी हैं, अब कामकाज को अमलीजामा पहनाने की बारी है। यही वह वक्त जब धांधली के हजार रास्ते खुलते हैं। इसलिए अभी ये कीचड़ के छींटे तो मात्र प्री मानसूनी चेतावनी हैं यही हाल रहा तो कहीं पूरा कमल ही कीचड़ की बारिश में न ढंक जाए। 
आखिर में प्रसंगवश एक रोचक तथ्य यह कि नरेन्द्र मोदी ने विवाह किया और पत्नी का त्याग किया। भारतीय संस्कृति में पत्नी का दर्जा लक्ष्मी का है और लक्ष्मी कमल में विराजती है। कहीं मोदी को त्याज्य पत्नी(लक्ष्मी)का अभिशाप इन चार देवियों के कीचड़ के रूप में तो उन्हें नहीं झेलना पड़ रहा है!

1 comment:

  1. आज जनसत्ता में आपकी यह गंभीर विचारपूर्ण ब्लॉगपोस्ट पढ़ने की बाद आपके ब्लॉग तक पहुंचकर बहुत अच्छे लेख पढ़ने को मिले ......

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