Friday, 31 August 2012

लोकतंत्र का विटामिन है 'लूट'


बड्डे सुबह-सुबह समाचार पत्र लिए गुस्से में तमतमाए यहां-वहां ताक ही रहे थे कि इतने हम दिखे तो, देश में हो रही ‘लूट’ का दुखड़ा रोने लगे और बोल पड़े- ‘बड़े भाई भ्रष्टाचार की तो अब हद हो गई। पहले यही लूट पैसा-रुपिया में थी, सीमित थी, तब ‘लूट’ में भी एक लिहाज था, हया थी कि ज्यादा में लोग क्या कहेंगे। पर अब है कि हजार, लाख, करोड़ से बात बढ़कर लाख-करोड़ तक चली गई...और आगे कहां तक जाएगी इसकी भविष्यवाणी कोई खांटी का ज्योतिषी भी नहीं कर सकता।’ हमने बड्डे की नब्ज पकड़कर कहा इस ‘लूट’ की चिंता में खून जलाने का भी भला कोई फायदा है? ऐसे में तो दो चार बीमारी और पाल लोगे और उखड़ना कुछ नहीं है। बाबा, अन्ना जैसे तो पानी मांग गए.....केजरीवाल का कचूमर निकलता दिख ही रहा है, बडेÞ-बडेÞ आंदोलन कब्र में लीन हैं, तो तुम्हारी-हमारी क्या बिसात!
    क्योंकि भ्रष्टाचार अब चर्चा-परिचर्चा, बहस-बाजी, लिखने-पढ़ने का विषय नहीं रहा। तुम ही देख लो कित्ता विरोध तुमने किया जिस पर हमने बड़े-बड़े लेख लिखे, टीवी में बहसें करार्इं पर क्या हुआ सिवाए बाल सफेद करने के। हमने भी थोड़ा ‘लूट’ का विटामिन लिया होता तो आज हमारे बाल नहीं कपड़े फक्क सफेद होते। इसलिए अब ‘लूट’ बहस बाजी का नहीं सिर्फ करने और करने का चीज है, जिसको जहां जैसा बन पड़े लूटते रहो। जिसकी सरकार वह लूटे और जो विपक्ष में वह चिल्लाए, धरना दे, बहिष्कार करे, सड़क में लोटे और जब चुनाव में यही पांसा पलट जाए तो फिर  सिलसिला दूसरी ओर से रिवर्स हो जाए।
   भारत में लोकतंत्र का यही अर्थ है,यही इसका असली चरित्र है। इसलिए जो भी आचरण नेताओं की जमात ने अख्तियार कर रखा है वे लोकतंत्र के विटामिन ‘लूट’ का का ही तो रस ले रहे हैं और जिसके पास विटामिन नहीं वह बेचारा है। समझने वाली बात है बड्डे कि आखिर यह अंगे्रजों का ही दिया तंत्र-मंत्र है। उन्होंने ने भी अपनी क्षमता भर देश लूटा-खसूटा और जाते-जाते ‘लूट’ करने में कैसे हमें आसानी हो उसका कानून भी बना-पढ़ा गए। लेकिन बड्डे आज तो अंग्रेज भी सोच रहे होंगे कि हम तो कुछ भी लूट ही नहीं पाए... बल्कि जित्ता दो सौ साल में लूटकर जहाजों में बड़ी मेहनत मशक्कत से ढ़ो-ढ़ो के लाए उत्ता तो सरकार के कारिंदे एक-एक सौदे में फटकारे दे रहे हैं।
 बड्डे हमारे देश के देशी अंग्रेज तो और बडेÞ वाले निकले...जैसे वे परदेशी अंग्रेजों को बता देना चाहते हैं कि तुम लूटने में कितने कच्चे और बच्चे थे, जबकि तुम्हारा तो एकाधिकार था, वो भी 4 या 5 बरस नहीं पूरे दो सौ बरस तक। फिर भी क्या लूट पाए! जित्ता इंग्लैण्ड था उत्ता ही रह गया। ग़र इतना मौका हमारी बिरादरी को मिला होता तो, वे यहां की बूंद-बूंद निचोड़ लेते।
 सोचो बड्डे! यदि हमारे देशी अंग्रेजों ने पूरे विश्व में इंग्लैण्ड के अंग्रेजों की तरह शासन किया होता तो,  कसम से अब तक तो हमारे हर नेता का खुद का एक देश होता जहां न बार-बार चुनाव होते, न ही नासपीटी जनता के हाथ-पैर जोड़ने पड़ते। दरअसल अंग्रेज लोकतंत्र के विटामिन लूट को ठीक पहचान नहीं पाए, इसीलिए आज भी उसी टापू में कुलबुला रहे हैं। लेकिन हमारे वाले अंग्रेजों को देखो, जनता की सेवा में मिल रहे ‘लूट’ नामक विटामिन से उनके चेहरे बिना फेशियल के कैसे चमक-दमक रहे हैं और  अपनी शक्ल देख लो। जनता क्या एक परिवार की सेवा में भरी जवानी मुरझाए जा रहे हैं। सो बड्डे अभी भी मौका है लोकतंत्र में ‘लूट’ के विटामिन को पहचानो वरना! ये विटामिन कोयला, स्पेक्ट्रम, खेल, खनिज, रेत, जमीनों आदि में विभिन्न रूपों मौजूद है।
  

No comments:

Post a Comment