Monday, 20 August 2012

कांड का बहुवचन है कांडा

 बड्डे को बड़ी चिंता में उदास बैठे देखकर आखिर हमने ही पूछ लिया कि इस उदासी का सबब...क्या  है? वे  बोले बडेÞ भाई न ही पूछो तो ही ठीक है वरना  ‘बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी...।’ बड्डे बोले बडेÞ भाई अपने जीवन में ‘कांड’ तो हमने बहुत सुने हैं, जैसे रामायण में बालकांड से लेकर लंकाकांड तलक और  फिर हमारी संस्कृति में कर्मकांडों की जन्म से लेकर मृत्यु तक षोड़श कर्मकांडों की लम्बी श्रृखंला हिमालय की पर्वत श्रृंखला की तरह विस्तृत है। राजनीति में भी अक्सर ‘कांड’ षड़यंत्र के रूप नित घटते रहते हैं, समाज में भी लूट कांड, अग्नि कांड जानबूझकर कराये जाते हैं, लेकिन बड़े भाई ये कांडा क्या है। क्या ‘कांड’ का बहुवचन है ‘कांडा’? हमने कहा- अरे नहीं ये तो वहीं गोपाल कांडा है जिसने जूते पहनाने की दुकान से अपना कैरियर शुरू किया और एयर लाइंस से मंत्री तक का सफर विभिन्न काडों को अंजाम देते हुए पूरा किया।
   सम्पूर्ण वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में खासकर भारत में सर्वाधिक ग्रोथ इसी  सेक्टर में देखने में आती है। देश कितनी भी मुश्किल में  हो, उसकी आवाम गश खा खाकर जीने को मजबूर हो, पर राजनीति का सेंसेक्स कभी नहीं गिरता वह तो ऊर्ध्वाधर रेखा में फर्श से अर्श का सफर धड़ल्ले से तय करता है। ऐसी नजीर भारतीय राजनीतिक व्यवस्था से बेहतर दुनिया के किसी और मुल्क में मिलना मुश्किल है।
 विभिन्न क्षेत्रों में कांडों को कैसे अजांम दिया जाता है इसका विश्वविद्याालय भारत भारत में खुलना चाहिए। जहां दुनिया के लोग ‘कांड’ कैसे किए जाते और कैसे उनसे बच निकला जाता है का एक वर्षीय डिप्लोमा हासिल करेंगे। कांडा इस विश्वविद्यालय के कुलपति होंगे तो, एनडी तिवारी जैसे लोग इसके सलाहकार मंडल में नियुक्त किए जाएंगे। क्योंकि वे अनुभवी हैं और दोबारा गलती न हो उनसे बेहतर और कौन जान सकता है। बड्डे बोले सेक्स कांड सीखने के लिए विश्वविद्यालय, वो भी भारत में? यूरोप अमेरिका तो हमसे भी अव्वल है इन कांडों में फिर...! हमने कहा अरे बड्डे याद करो जब बिल क्ंिलटन तो राष्टÑपति हो के खुद को बचा नहीं पाए और माफी मांगनी पड़ी थी, दुनिया सबसे बड़े आका को। तो ऐरे-गैरे (मंत्री-विधायक)कैसे खुद को महफूज रख सकते हैं। हमारे यहां सबसे अनुकूल महौल है कांडों को सीखने सिखाने का। कोई भी चुनाव हो पहले शराब फिर शबाब का जोर रहता है, वोट लेने से किसी भी समस्या का निदान पाने तक। क्योंकि यहां गरीब हैं गरीबी है...दोनों को धन चाहिए, नौकरी चाहिए और कभी-कभी तो शोहरत भी चाहिए। थोड़ी यादाश्त पर जोर डालें तो राजनीति में ऐसे कांडों की सीरीज मिल जाएगी.. नब्बे के दशक में लखनऊ में मंत्री अमरमणि-मधुमिता शुक्ला कांड, राजस्थान में भंवरीदेवी कांड, भोपाल का शेहला मसूद कांड भी कमोबेश इसी का नतीजा था, हालिया फिजा-चांद मोहम्मद कांड..और लेटेस्ट गीतिका कांड जिसके पीछे कांडा हैं। इन सभी में स्त्री ही शिकार हुई पहले जिस्म से फिर जान से। मजाल है कि एक भी पुरुष (मंत्री) ने जान गंवाई हो या सजा पाई हो। सजा क्या पकड़े जाने या आरोपित होने के बाद भी मजा ही मजा चाहे जेल में ही क्यों न हों। इसलिए देश की स्त्रियों को समझना होगा कि जब भी वे ऐसे कांडों में कांडाओं की सहयोगी बनेगी और सजा की बात आयेगी तो उन्हें ही जीवनमुक्ति की ओर उन्मुख होना होगा। आखिर कथित सम्पन्नता किसलिए हासिल की जाती है कांडाओं द्वारा। यह कांडों  के बहुवचन ‘कांडा’ से समझा जा सकता है।
- श्रीश पांडेय 

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