इं टरनेट पर बड्डे को सर्फिंग करते देख हम पूछ बैठे कि बड़ी-बड़ी आंखें गाड़कर क्या देख रहे हो.. वे बोले बड़े भाई कुछ नहीं बस फिकर में हूं कि अपने देश में आधुनिकता (नंगापन) का दायरा अब इस कदर पसर चुका है कि पूरब और पश्चिम की संस्कृति में साम्यता नजर आने लगी है। अब तो देश में ही यूरोप, अमेरिका में होने का अहसास होता है। ऐसे में पश्चिम जाने की जरूरतई का है। सब कुछ दस बाई बारह की स्क्रीन में उपलब्ध है। एफएम की तरह जब चाहे, जहां चाहो खोलो और डूब जाओ, देखो दिखाओ, लाइफ बनाओ...।
याद आती है सत्तर के दशक की कथित हॉट फिल्म ‘बॉबी’ जिसमें डिंपल के एक्सपोजर पर.. संंस्कार और संस्कृति के पोषकों ने ऐसे मुंह बिचकाया था कि मानो अब देश और देशवासियों का नैतिक पराभव शुरू हो गया। कभी पूरब और पश्चिम की नारी की तुलना का ख्याल भी हमें गर्व से भर देता था कि हमारी स्त्रियां कितनी मर्यादित और संस्कारित हैं रहन-सहन से लेकर तौर तरीकों में। पर अब जिस तरह का भौंडापन ड्रेसिंग सेंस को लेकर देश में पांव पसार रहा है। उससे भोतई प्रॉब्लम होने वाली है।
हमने कहा अरे बड्डे किस-किस को रोकोगे-टोकोगे ये देश ‘गरीब की लुगाई’ बन चुका है। जिसको जो मर्जी आये करे। कोई कोयला लूट रहा है, तो कोई स्पेक्ट्रम और जो लूट नहीं पा रहा वह खुद को लुटाकर जिस्म की कीमत पर जो बन पड़े बटोरने पर आमादा है। अब देखो शर्लिन चोपड़ा को ‘प्लेबॉय’ पत्रिका में अपनी न्यूड तस्वीर देर से देने का अफसोस है और उसकी यह स्वीकारोक्ति कि ‘मैंने पैसे के बदले सेक्स किया’ को कुछ यूं रेखांकित किया कि उसने वेश्यावृत्ति नहीं, की यह तो बोल्डनेस है। दूसरी ओर पूनम कह रही कि तू डाल-डाल, तो मैं पात-पात...मीडिया इन घटनाओं में मसाला मार के कुछ यूं पेश कर रहा है..मानो दोनों में एक स्वस्थ प्रतियोगिता चल रही है और देश की आवाम को इस बात की जानकारी होना जरूरी है कि कौन कितने कपडेÞ उतारेगा, कितना बोल्ड बन सकता है।
बड्डे बोले कपडेÞ उतारने में बोल्ड होने जैसी क्या बात है? हमने कहा जो जितने कम कपड़े पहने और उसके बारे में जितनी ज्यादा बातें बेशर्मी से कर सके उतना बड़ा बोल्ड...। समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है, तब परिभाषाएं क्यों नहीं? कुछ समाचारों की साइटें तो ऐसी हैं जिसमें घपले-घोटाले,लूट, मानवीय संवेदनाओं की खबरों से ज्यादा अहमियत सेक्स और सनसनी से भरी खबरों को दी जा रही है। इसके पीछे तर्क मार्केट के टेंÑड का है, धंधा जैसे चले, चलाना मजबूरी ही नहीं, जरूरी भी है।
दुनिया की बड़ी-बड़ी मैग्जीनों का धंधा इसी बोल्डता के आवरण में चमक और चल रहा है। टीवी के शो चाहे हास्य-व्यंग्य के क्यों न हों पर बिना बोल्ड हुए न तो चलते हैं न बिकते हैं। नए शोध के मुताबिक अब स्त्रियों को ‘आईक्यू’ पुरुषों की बनिस्बत बढ़ा है। अब उन्हें बेहतर मालूम है कि उनकी कथित बोल्डता का बिजनेस कितना बड़ा हो चुका है। जिन्हें बोल्ड बनना नहीं आता वे जीवन भर संघर्ष करती रहती हैं, शादी करके बच्चे पालती, उसी में दमती, रमती दुनिया से पलायन कर जाती हैं। पर जिसने यह सूत्र जान लिया, उनका पल भर में दुनिया की नजरों में मशहूर होना तय है। इस निमित्त शर्लिन, पूनम जैसी स्त्रियां रोल मॉडल हैं। जापान और कोरिया में तो बाकायदा बोल्ड बनने के प्रशिक्षण शिविर शुरू किए गये हैं। इसलिए बड़्डे आज की नारी का नया सूत्र है -‘बोल्ड बनिए, वर्ल्ड को मुठ्ठी में रखिए’।
आखिर बड्डे बडेÞ उदास हो के बोले बड़े भाई किसी किसी शायर ने ठीक ही कहा है कि-
‘शोहरतें इस तरह भी मिलतीं हैं कि तुमने अच्छा किया बुरा करके’।
याद आती है सत्तर के दशक की कथित हॉट फिल्म ‘बॉबी’ जिसमें डिंपल के एक्सपोजर पर.. संंस्कार और संस्कृति के पोषकों ने ऐसे मुंह बिचकाया था कि मानो अब देश और देशवासियों का नैतिक पराभव शुरू हो गया। कभी पूरब और पश्चिम की नारी की तुलना का ख्याल भी हमें गर्व से भर देता था कि हमारी स्त्रियां कितनी मर्यादित और संस्कारित हैं रहन-सहन से लेकर तौर तरीकों में। पर अब जिस तरह का भौंडापन ड्रेसिंग सेंस को लेकर देश में पांव पसार रहा है। उससे भोतई प्रॉब्लम होने वाली है।
हमने कहा अरे बड्डे किस-किस को रोकोगे-टोकोगे ये देश ‘गरीब की लुगाई’ बन चुका है। जिसको जो मर्जी आये करे। कोई कोयला लूट रहा है, तो कोई स्पेक्ट्रम और जो लूट नहीं पा रहा वह खुद को लुटाकर जिस्म की कीमत पर जो बन पड़े बटोरने पर आमादा है। अब देखो शर्लिन चोपड़ा को ‘प्लेबॉय’ पत्रिका में अपनी न्यूड तस्वीर देर से देने का अफसोस है और उसकी यह स्वीकारोक्ति कि ‘मैंने पैसे के बदले सेक्स किया’ को कुछ यूं रेखांकित किया कि उसने वेश्यावृत्ति नहीं, की यह तो बोल्डनेस है। दूसरी ओर पूनम कह रही कि तू डाल-डाल, तो मैं पात-पात...मीडिया इन घटनाओं में मसाला मार के कुछ यूं पेश कर रहा है..मानो दोनों में एक स्वस्थ प्रतियोगिता चल रही है और देश की आवाम को इस बात की जानकारी होना जरूरी है कि कौन कितने कपडेÞ उतारेगा, कितना बोल्ड बन सकता है।
बड्डे बोले कपडेÞ उतारने में बोल्ड होने जैसी क्या बात है? हमने कहा जो जितने कम कपड़े पहने और उसके बारे में जितनी ज्यादा बातें बेशर्मी से कर सके उतना बड़ा बोल्ड...। समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है, तब परिभाषाएं क्यों नहीं? कुछ समाचारों की साइटें तो ऐसी हैं जिसमें घपले-घोटाले,लूट, मानवीय संवेदनाओं की खबरों से ज्यादा अहमियत सेक्स और सनसनी से भरी खबरों को दी जा रही है। इसके पीछे तर्क मार्केट के टेंÑड का है, धंधा जैसे चले, चलाना मजबूरी ही नहीं, जरूरी भी है।
दुनिया की बड़ी-बड़ी मैग्जीनों का धंधा इसी बोल्डता के आवरण में चमक और चल रहा है। टीवी के शो चाहे हास्य-व्यंग्य के क्यों न हों पर बिना बोल्ड हुए न तो चलते हैं न बिकते हैं। नए शोध के मुताबिक अब स्त्रियों को ‘आईक्यू’ पुरुषों की बनिस्बत बढ़ा है। अब उन्हें बेहतर मालूम है कि उनकी कथित बोल्डता का बिजनेस कितना बड़ा हो चुका है। जिन्हें बोल्ड बनना नहीं आता वे जीवन भर संघर्ष करती रहती हैं, शादी करके बच्चे पालती, उसी में दमती, रमती दुनिया से पलायन कर जाती हैं। पर जिसने यह सूत्र जान लिया, उनका पल भर में दुनिया की नजरों में मशहूर होना तय है। इस निमित्त शर्लिन, पूनम जैसी स्त्रियां रोल मॉडल हैं। जापान और कोरिया में तो बाकायदा बोल्ड बनने के प्रशिक्षण शिविर शुरू किए गये हैं। इसलिए बड़्डे आज की नारी का नया सूत्र है -‘बोल्ड बनिए, वर्ल्ड को मुठ्ठी में रखिए’।
आखिर बड्डे बडेÞ उदास हो के बोले बड़े भाई किसी किसी शायर ने ठीक ही कहा है कि-
‘शोहरतें इस तरह भी मिलतीं हैं कि तुमने अच्छा किया बुरा करके’।
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