बड्डे ने पहले टीवी पर कमाल फारूकी का कमाल का बयान सुना कि 'यदि आतंकवादी भटकल को इसलिए गिरफ्तार किया गया क्योंकि वह मुसलमान है, तो इस गिरफ्तारी की जांच करके यह सुनिश्चित किया जाए कि भटकल को मुस्लिम होने की सजा न मिले।' फिर हमें फोन मिलाया कि बड़े भाई देश में राजनीति का स्तर कितना गिर गया है। सोचता हूं कि क्या रुपए की गिरावट और राजनीति परस्पर समानुपाती हैं? पहले रुपया मजबूत था तो इतनी गिरावट न थी जितना 68 रुपया तक गिर जाने के बाद है। 'इट मीन्स' रुपया मजबूत, तो देश मजबूत और देश तो राजनीति भी। लेकिन रुपया से लेकर हर स्तर पर गिरावट है चाहे बाबाओं को देख लो, या लुच्चे टाईप लड़कों को। अब जो बचा है वह ओनली 'टुच्ची राजनीति' है। चाहे सदन में देख लो, या फिर सड़क पर। जो कथित नेताओं के निजी टाईप के दलों के मार्फत गाहे बगाहे बिजली की तरह कड़कती और लुप्त हो जाती है। इस पर बड़े भाई ने एक शेर मारा- "देखो बड्डे बिजली कैसे चमक तुरत छिप जाती है, जैसे मुहब्बत लुच्चे की, पल भर में खमत हो जाती है।" इत्ता तो मानना होगा बड़े भाई कि भले लोकतंत्र संस्था का अविष्कार यूरोप में हुआ हो पर उसका असल प्रयोगकर्ता देश भारत है। इसलिए लोकतंत्र की 'ओरिजनल' स्वतंत्रता केवल अपनी कंट्री में दिखती है कि कैसे 'लोक' स्वतंत्र रूप से 'तंत्र' को चलाने के लिए पहले नुमाईंदो को चुनता है, फिर ये नुमाईंदे इसी 'तंत्र' में बैठकर 'लोक' पर मनचाही सवारी गांठत् हैं कि जो जी में कहो, करो लेकिन पांच् साल 'सेफ' है। अब बड्डे की बारी थी टुच्चा टाईप शेर दागने की, कि- "यहां चाहे जो करो वाह! क्या शमा है, कुछ बको इस लोकतंत्र में सब क्षमा है।" अब टुंडा की तरह भटकल भी भटकते-भटकत् किस्मत से गिरफ्त में आया तो देश के 'सो कॉल्ड सेक्युलर' नुमाईंदों को इनमें आंतकी कम 'मुस्लिम् फैक्टर' ज्यादा दिख रहा है। ऐसे में हमें अटल विहारी वाजपेयी का स्टेटमेंट याद हो आया कि- 'यह सच है कि हर मुसलमान आतंकी नहीं मगर अफसोस की बात है कि हर पकड़ा गया आतंकी मुसलमान निकलता है।' मगर इन कथितों को यह गवारा नहीं कि कोई आतंकी मुसलमान है, गर है तो यह मुसलमान् के सम्मान के खिलाफ है। इतनी चिंता इसलिए क्योंकि उनका मुसलिम वोट पर कॉपीराईट है। वर्षो से वे इसी वोट की रोटी और वोटी खा रहे हैं। ऐसों के लिए वोट प्राथमिक और देश द्वितीयक है। इसीलिए आतंकी नेता को नहीं, जनता को निपटाते हैं। यानी दोनों का टारगेट 'जनता' है, हां तरीके अलग-अलग हैं। सो बड़े भाई कमाल भल् भटकें भटकल पर मगर पब्लिक है कि सब जानती है। |
Saturday, 7 September 2013
भटकल पर कमाल के भटकाव
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- श्रीश पांडेय
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