इनदिनों
विन्ध्य की धरा के बरक्स यह खबर सुर्ख है कि जमीनों के दाम बेतहाशा बढ़े
हैं, तो उनका रजिस्ट्री शुल्क दो गुना के करीब हो गया है, बहती गंगा में
नगर निगम ने भी सम्पत्ति कर लगभग दो गुना कर दिया। आलम यह है कि भोपाल और
इंदौर के जमीन के दामों की तुलना सतना और रीवा से की जाने लगी है। अचानक
ऐसा क्या इस इलाके में शुमार हो जो एक दशक में दाम आसमान छूने लगे? विन्ध्य
की धरती और इस इलाके की महत्ता के बारे में कवि रहीम ने कहा था कि-
'चित्रकूट में रमि रहे रहिमन अवध नरेश, जा पर विपदा पड़त है सो आवत यह
देश।' चित्रकूट के संदर्भ में यह बात सम्पूर्ण क्षेत्र विन्ध्य यानी सतना,
पन्ना और रीवा के इलाके को लेकर कही गई होगी। उक्त दोहे का ताल्लुक केवल
इसलिए नहीं है कि आपदकाल में आगरा से आकर अकबर के नौ-र8ों में से एक
अब्दुर्र रहीम खानखाना और अवध के नरेश प्रभु श्रीराम ने इस अंचल में शरण ली
और निवास किया था। बल्कि इसलिए कि यहां सुरम्य वन, नदियां और जगह
शान्तिपूर्ण थी। यह बात दीगर है कि कवि रहीम और अवध नरेश के संज्ञान में न
रहा हो कि यहां की धरा के गर्भ में मौजूद लाइम स्टोन वैश्विक दज्रे का है,
जिससे झोपड़ी नहीं बल्कि बड़े-बड़े कल कारखाने और अट्टालिकाएं तैयार की जा
सकेंगी। मगर इसकी पहचान दूरदृष्टि रखने वाले धनपतिओं को जरूर थी और इसीलिए
रहीम के दोहे के भावार्थ की विवेचना और जांच बाहर के उद्योगपतियों ने बेहतर
ढ़ंग से इस सत्य के आलोक में की, कि उद्योग हवा में नहीं जमीन में खोले और
लगाए जाते हैं। इस संभावना को बांचने वाले भू-माफियाओं और इसके दलालों ने
उद्योगपतियों की तरह समय रहते अवसर पहचाना और भूमिपुत्रों को फुसलाकर कर
सदियों से अन्न उत्पन्न कर रही धरा को धर दबोचा। इसलिए उद्योग धन्धों के
लिहाज से विन्ध्य के दो प्रमुख जिले सतना और रीवा में आज की तारीख में जो
दो धंधे प्रमुखता से चलन में हैं और रहेंगे वे हैं- 'सीमेंट' और
'एग्रीमेंट'। जिनका सरोकार विशुद्ध मुनाफा कमाना है। सीमेंट कारखानों से
निकलते धूल और धुएं से इलाके की जमीन बंजर हो रही है, तो शहर सहित आसपास के
गांव ऐसे गंम्भीर प्रदूषण की चपेट में आ रहे हैं, जिससे यह इलाका कई तरह
के रोगों की शरण स्थली बनता जा रहा है। बिरला सीमेंट से शुरू हुए इस
कारोबार ने जेपी, प्रिज्म को न सिर्फ यहां की धरा में मौजूद लाईम स्टोन ने
ललचाया बल्कि तकरीबन एक दजर्न कारखानों के अन्य उद्योगपतियों को यहां धरा
को खोद-खन डालने, माल कमाने और लाखों एकड़ भूमि को बंजर कर देने के लिए
न्योता है। इस इलाके दो बड़े शहर सतना- रीवा को सीमेंट की सड़कों से पाट
दिया गया है। यदि दोनों शहरों की सेटेलाईट से तस्वीर ली जाए तो कुछ यूं
प्रतीत होगा जैसे पत्थर के पहाड़ को काटकर दोनों शहर बसा दिए गए हैं।
गुणवत्ता का आलम यह है कि बनने के 6 से 12 माह में ही सड़कें दम तोड़ देती
हैं। ऐसी सड़कों पर सामान्य रूप चलने-फिरने में गिर पड़ने और गिरने पर
जानलेवा चोट से दो-चार होना आम है, क्योंकि इन सड़कों पर गिरना पत्थर पर
गिरने जैसा है। आप माने या न माने लेकिन गिरते भू-जल स्तर की प्रमुख वजह ये
सीमेंट उद्योग और सीमेंट से शहर को पाट दी गई सड़कें हैं। वह दिन दूर नहीं
जब आपको आश्चर्य न होगा कि यह इलाका 'डेड जोन' में शुमार हो जाए। यह बात
समझ से परे है कि प्राकृतिक सौन्दर्य और पर्यावरण से सम्पन्न यह इलाका खुद
को काल के गाल में झोंकने पर क्यों उतारू है? यह शर्मनाक है कि नेताओं की
समूची विरादरी भी मौन होकर इस बेतरतीव विकास पर अपनी स्वीकृति देती आई है।
उधर जमीनों में एग्रीमेंट के षड्यंत्र से किसान धन की लालच में अपनी पुरखों
की जमीन-जायजाद से कट रहे हैं तो, चंद रुपए लगाकर शातिर धंधेबाज चांदी काट
रहे हैं। दरअसल, एग्रीमेंट लूट का एक ऐसा जुगाड़ है जो बिना पूरी रकम लगाए
बीच में ही माल बनाने का हवाई उद्योग साबित हुआ है, तो दूसरी ओर राजस्व की
क्षति का काला दस्तावेज। कथित लोगों की चौकड़ी थोड़ा धन लगाकर जमीनों का
एग्रीमेंट निर्धारित अवधि के लिए करा लेती है और फिर प्लॉटिंग के नाम पर
इसकी अल्टी-पल्टी का खेल शुरू हो जाता है। बेचारा उपभोक्ता इस खेल का आखिरी
शिकार होता है और उसे 200 रुपए वर्ग फिट की जमीन 700 से 1000 देकर हाथ आती
है। इस कुटीर उद्योग में नेता से व्यापारी तक, डॉक्टर से मास्टर तक, यहां
तक कि गांव, शहर, नगर का हर शख्स इसी हवाई व्यापार में मशगूल है।
सवाल
बड़ा और बारीक है कि इस इलाके में ऐसा क्या हो गया कि जमीनों के दाम आग
उगल रहे हैं। सिवा दो धंधों- सीमेंट और एग्रीमेंट के शहर में और क्या है और
रहेगा? इस पर भी चितंन-मनन करना होगा। वरना पूरा पर्यावारण नष्ट कर देने
और लकीर पीटने के सिवा और कुछ हाथ आने वाला नहीं है।
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